अधम बालक
वर्षाके दिन थे। तालाब लबालब भरा हुआ था। मेढक किनारेपर बैठे एक स्वरसे टर्र-टर्र कर रहे थे। कुछ लड़के स्नान करने लगे। वे पानीमें कूदे और तैरने लगे। उनमेंसे एकने पत्थर उठाया और एक मेढकको दे मारा। मेढक कूदकर पानीमें चला गया। मेढकका कूदना देखकर लड़केको बड़ा मजा आया। वह बार-बार मेढकको पत्थर मारने और उन्हें कूदते देखकर हँसने लगा ।
पत्थर लगनेसे बेचारे मेढकको चोट लगती थी। उनको मनुष्यकी भाषा बोलनी आती तो अवश्य वे लड़केसे प्रार्थना करते और शायद उसे गाली भी देते। लेकिन बेचारे क्या करें। चोट लगती थी और प्राण बचानेके लिये वे पानीमें कूद जाते थे। अपनी पीड़ाको सह लेनेके सिवा उनके पास कोई उपाय ही नहीं था ।
लड़का नहीं जानता था कि इस प्रकार खेलमें मेढकोंको पत्थर मारना या कीड़े-मकोड़े, पतिंगे आदिको तंग करना अथवा उनकी जान ले लेना बहुत बड़ा पाप है। जो पाप करता है, उसे बहुत दुःख भोगना पड़ता है और मरनेके बाद यमराजके दूत उसे पकड़कर नरकमें ले जाते हैं। वहाँ उसे बड़े-बड़े कष्ट भोगने पड़ते हैं। लड़केको तो मेढकोंको पत्थर मारना खेल जान पड़ता था। वह उन्हें बार-बार पत्थर मारता ही जाता था ।
'इसे पकड़ ले चलो।' लड़केने पीछेसे जो यह बात सुनी मुड़कर देखने लगा। उसने देखा कि तीन यमदूत खड़े हैं। तो काले-काले यमदूत । लाल-लाल आँखें । बड़े-बड़े दाँत । टेढ़ी नाक। हाथोंमें मोटे-मोटे डंडे और रस्सी। लड़का उन्हें देखते ही डर गया। उसने साथियोंको पुकारा, पर वहाँ कोई नहीं था । वह खेलनेमें लग गया था और लड़के स्नान करके चले गये थे।
'पकड़ लो इसे!' एक यमदूतने दूसरेसे कहा।
'यह तो गुबरैले-जैसा घिनौना है।' दूसरे यमदूतने मुख बनाकर पकड़ना अस्वीकार किया।
'मैं इसे नहीं छू सकता । यह बड़ा नीच है। मेरे हाथ मैले हो जायँगे ।' तीसरेने कहा ।
'तब इसे फंदेमें बाँध लो और घसीटते हुए ले चलो।' पहलेने सलाह दी। लड़का यह सब सुन रहा था। उसके प्राण मानो निकले जा रहे थे। उसने बड़ा साहस करके पूछा- 'मुझे कहाँ ले जाओगे ?'
'नरकमें। जहाँ सब पापी जीते ही तेलमें पकाये जाते हैं पकौड़ीके समान ।' एक यमदूत गरजकर बोला ।
'पकौड़ीके समान!' लड़केको माताका पकौड़ी बनाना स्मरण आया। 'बाप रे, मैं पकौड़ीके समान पकाया जाऊँगा।'
'मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? मुझे छोड़ दो।' लड़केने गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की।
'तू पापी है। तू महा अधम है। अब यदि कभी पाप न करे तो छोड़ दें। यमदूतोंमें बड़ेने कहा ।
'मैं शपथ खाता हूँ, कभी पाप न करूँगा।' लड़केने बिना सोचे-समझे दोनों कान पकड़कर प्रतिज्ञा की । यमदूत तुरंत छूमंतर हो गये। लड़का भागा-भागा घर आया। उसने अपनी माताको सब बातें बताकर पूछा- 'माँ! मैंने कौन-सा पाप किया है ?'
माताने कहा – 'बेटा! निरपराध मेढकोंको मार-मारकर तू बड़ा पाप कर रहा था। किसी भी निरपराधको कष्ट देना महापाप है।'
'पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ॥'
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