दया की महिमा

एक बहेलिया था। चिड़ियोंको जालमें या गोंद लगे बड़े भारी बाँसमें फँसा लेना और उन्हें बेच डालना ही उसका काम था। चिड़ियोंको बेचकर उसे जो पैसे मिलते थे, उसीसे उसका काम चलता था।

एक दिन वह बहेलिया अपनी चद्दर एक पेड़के नीचे रखकर अपना बड़ा भारी बाँस लिये किसी चिड़ियाके पेड़ पर आकर बैठनेकी राह देखता बैठा था। इतनेमें एक टिटिहरी चिल्लाती दौड़ी आयी और बहेलियेकी चद्दरमें छिप गयी ।

टिटिहरी ऐसी चिड़िया नहीं होती कि उसे कोई पालनेके लिये खरीदे। बहेलिया उठा और उसने सोचा कि अपनी चद्दरमेंसे टिटिहरीको भगा देना चाहिये । इसी समय वहाँ ऊपर उड़ता एक बाज दिखायी पड़ा। बहेलिया समझ गया कि यह बाज टिटिहरीको पकड़कर खा जानेके लिये झपटा होगा, इसीसे टिटिहरी डरकर मेरी चद्दरमें छिपी है। बहेलियेके मनमें टिटिहरीपर दया आ गयी। उसने ढेले मारकर बाजको वहाँसे भगा दिया। बाजके चले जानेपर टिटिहरी चद्दरसे निकलकर चली गयी।

कुछ दिनों पीछे बहेलिया बीमार हुआ और मर गया । यमराजके दूत उसे पकड़कर यमपुरी ले गये। यमपुरीमें कहीं आग जल रही थी, कहीं चूल्हेपर बड़े भारी कड़ाहेमें तेल उबल रहा था। पापी लोग आगमें भूने जाते थे, तेलमें उबाले जाते थे। यमराजके दूत पापियोंको कहीं कोड़ोंसे पीटते थे, कहीं कुल्हाड़ीसे काटते थे। और भी भयानक कष्ट पापियोंको वहाँ दिया जाता था। वहेलियेके वहाँ जाते ही, वहाँ सैकड़ों, हजारों चिड़ियाँ आ गयीं और वे कहने लगीं-'इसने हमें बिना अपराधके फँसाया और बेचा है। हम इसकी आँखें फोड़ देंगी और इसका मांस नोच-नोचकर खायँगी।'

बेचारा बहेलिया डरके मारे थर-थर काँपने लगा। उसी समय वहाँ एक टिटिहरी आयी। उसने हाथ जोड़कर यमराजसे कहा – 'महाराज! इसने बाजसे मेरे प्राण बचाये हैं। इसको आप क्षमा करें।'

यमराज बोले—'यह बड़ा पापी है। सब चिड़ियाँ इसे नोचेंगी और फिर इसे जलाया जायगा और कुल्हाड़ोंसे काटा जायगा। लेकिन यह छोटी टिटिहरी इसको बचाने आयी है। इसने एक बार इस चिड़ियापर दया की है। इसलिये इसको अभी संसारमें लौटा दो और इसे एक वर्ष जीने दो।'

यमराजके दूत बहेलियेके जीवको लौटा लाये। बहेलियेके घरके लोग उसकी देहको श्मशान ले गये थे और चितापर रखनेवाले थे। वे लोग रो रहे थे। इतनेमें बहेलिया जी गया। वह बोलने और हिलने लगा। उसके घरके लोग बहुत प्रसन्न हुए और उसके साथ घर लौट आये।

बहेलियेको यमराजकी बात याद थी। उसने चिड़िया पकड़ना छोड़ दिया। अपने भाइयोंसे भी चिड़िया पकड़नेका काम उसने छुड़ा दिया। वह मजदूरी करने लगा। सबेरे और

शामको वह रोज चिड़ियाँको थोड़े दाने डालता था । बहुत सी चिड़ियाँ उसके दाने खा जाया करती थीं। अब रोज वह भगवान् की प्रार्थना करता था और भगवान् का नाम जपता था । इससे बहेलियेके सब पाप कट गये। एक वर्ष बाद जब वह मरा, तब उसे लेने देवताओंका विमान आया और वह स्वर्ग चला गया।

तुम्हें भी किसी भी जीवको कष्ट नहीं देना चाहिये। सभी जीवोंपर दया करनी चाहिये । जो जीवोंपर दया करता है, उसपर भगवान् प्रसन्न होते हैं ।

पर हित सरिस धर्म नहिं भाई ।

पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ॥


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