मनुष्य या पशु ?

 एक सच्ची घटना है। नाम मैं नहीं बताऊँगा। बहुत-से लड़के पाठशालासे निकले। पढ़ाईके बीचमें दोपहरकी छुट्टी हो गयी थी। सब लड़के उछलते-कूदते, हँसते-चिल्लाते जा रहे थे। पाठशालाके फाटकके सामने सड़कपर एक आदमी भूमिपर लेटा था। किसीने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। सब अपनी धुनमें चले जा रहे थे ।


एक छोटे लड़केने उस आदमीको देखा, वह उसके पास गया। वह आदमी बीमार था। उसने लड़केसे पानी माँगा। लड़का पासके घरसे पानी ले आया। बीमारने पानी पीया और फिर लेट गया। लड़का पानीका बर्तन जिसका था, उसे देकर खेलने चला गया।


शामको वह लड़का घर आया। इसने सुना कि उसके पितासे एक सज्जन बता रहे हैं कि 'पाठशालाके सामने दोपहरके बाद एक आदमी आज सड़कपर मर गया। लड़का पिताके पास गया और उसने कहा- 'बाबूजी! वह तो सड़कपर पड़ा था। माँगनेपर मैंने उसे पानी पिलाया था।' पिता बहुत नाराज हुए। उन्होंने लड़केको कहा—'तुम मेरे सामनेसे भाग जाओ! तुमने एक बीमार आदमीको देखकर भी छोड़ दिया। उसे अस्पताल क्यों नहीं पहुँचाया? तुम मनुष्य नहीं पशु हो ।' डरते-डरते लड़केने कहा- 'मैं अकेला था । भला, उसे अस्पताल कैसे ले जाता ?'


पिताने डाँटा–'बहाना मत बनाओ। तुम नहीं ले जा सकते थे तो अपने अध्यापकको तुरंत बताते या घर आकर मुझे बताते। मैं कोई प्रबन्ध करता ।'


तुम सोचो कि तुम क्या करते हो? किसी रोगी, घायल या दुखियाको देखकर यथाशक्ति सहायता करते हो या चले जाते हो? तुम्हें पता लगेगा कि तुम क्या हो- 'मनुष्य या पशु ?'

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