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Showing posts from February, 2022

मेल का फल

अपने देशमें ऐसे बहुत-से नगर और गाँव हैं, जहाँ बहुत थोड़े पेड़ हैं। यदि वहाँ गाय-बैल भी कम हों और गोबर थोड़ा हो तो रसोई बनानेके लिये लकड़ी या उपले बड़ी कठिनाईसे मिलते हैं। एक छोटा-सा बाजार था। उसके आस-पास पेड़ कम थे और बाजारमें किसानोंके घर न होनेसे गाय-बैल भी थोड़े थे। जलानेके लिये लकड़ी और उपले वहाँके लोगोंको खरीदना पड़ता था। दो-तीन दिन वर्षा हुई थी, इसीसे गाँवोंसे कोई मजदूर बाजारमें लकड़ी या उपला बेचने नहीं आया था। इससे कई घरोंमें रसोई बनानेको ईंधन ही नहीं बचा था। उस गाँवके दो लड़के, जो सगे भाई थे, अपने घरके लिये सूखी लकड़ी ढूँढ़ने निकले। उनके पिता घरपर नहीं थे। उनकी माता बिना सूखी लकड़ीके कैसे रोटी बनाती और कैसे अपने लड़कोंको खिलाती। दोनों लड़के अपने पिताके लगाये आमके पेड़के नीचे गये। वहाँ उन्होंने देखा कि आमकी एक मोटी सूखी डाल आँधीसे टूटकर नीचे गिरी है। बड़े लड़केने कहा—'लकड़ी तो मिल गयी, लेकिन हमलोग इसे कैसे ले जायेंगे?' छोटेने कहा-'हम इसे छोड़कर जायँगे तो कोई दूसरा उठा ले जायगा।' लेकिन वे क्या करते। बड़ा दस वर्षका था और छोटा साढ़े आठ वर्षका। इतनी बड़ी लकड़ी उनसे उठ न

भूल का फल

रातमें वर्षा हुई थी। सबेरे रोजसे अधिक चमकीली धूप निकली। बकरीके बच्चेने माँका दूध पिया, भर पेट पिया। फिर घास सूँघकर फुदका। गीली नम भूमिपर उसे कूदनेमें बड़ा मजा आया और वह चौकड़ियाँ भरने लगा। पहले माताके समीप उछलता रहा और फिर जब कानोंमें वायु भर गयी तो दूरकी सूझी। माँ ने कहा- 'बेटा! दूर मत जा कहीं जंगलमें भटक जायगा।' वह थोड़ी दूर निकल गया था। उसने वहींसे कह दिया- 'मैं थोड़ी देरमें खेल-कूदकर लौट आऊँगा। तू मेरी चिन्ता मत कर। मैं रास्ता नहीं भूलूँगा।' माता मना करती रही, लेकिन वह तो दूर जा चुका था। उसे अपनी समझपर अभिमान था और माताके मना करनेपर उसे झुंझलाहट भी आयी थी। वह कूदनेमें मस्त था। चौकड़ी लगानेमें उसे रास्तेका पता ही नहीं रहा। उसने जंगलको देखा और यह सोचकर कि थोड़ी दूरतक आज जंगल भी देख लूँ, आगे बढ़ गया। सचमुच वह जंगलमें भटक गया और इसका पता उसे तब लगा, जब वह कूदते-उछलते थक गया। जब उसने लौटना चाहा तो उसे रास्तेका पता ही नहीं था। वह कैटीली घनी झाड़ियों के बीच रास्ता ढूढ़ने के लिये भटकता ही रहा। 'अरे, तू तो बहुत अच्छा आया। मुझे तीन दिनसे भोजन नहीं मिला है।' पासकी झाड़ीसे एक बड़

शेर का थप्पड़

 एक ब्राह्मण देवता थे। बड़े गरीब और सीधे थे। देशमें अकाल पड़ा। अब भला ब्राह्मणको कौन सीधा दे और कौन उनसे पूजा पाठ करावे। बेचारे ब्राह्मणको कई दिनांतक भोजन नहीं मिला। ब्राहाणने सोचा-'भूख से मरनेसे तो प्राण दे देना ठीक है।' वे जंगल में मरनेके विचार से गये। मरने के पहले उन्होंने शुद्ध हृदयसे भगवान् का नाम लिया और प्रार्थना की। इतनेमें एक शेर दिखायी पड़ा। ब्राह्मणने कहा 'मैं तो मरने आया ही था। यह मुझे खा ले तो अच्छा।' शेरने पास आकर पूछा 'तू डरता क्यों नहीं ?' ब्राहाणने सब बातें बताकर कहा- 'अब तुम मुझे झटपट मारकर खा डालो।' सच्ची बात यह थी कि उस वनके देवताको ब्राह्मणपर दया आ गयी थी। वही शेर बनकर आया था। उसने ब्राहाणको पाँच सौ अशर्फियाँ दीं। ब्राह्मण घर लौट आया सबेरे जब ब्राह्मण अशफ़ी लेकर वहाँके बनियेसे आटा दाल खरीदने गया तब बनियेने पूछा कि असर्फी कहाँ मिली? ब्राह्मणने सच्ची बात बता दी और वह आटा चावल आदि लेकर घर आ गया। बनिया बड़ा लोभी था। वह रातको अशर्कियाँके लोभसे वनमें गया। उसने भी जीभसे भगवान्‌का नाम लिया और प्रार्थना की। शेर आया। बनियेने कहा- 'तुम झटपट मु

दया की महिमा

एक बहेलिया था। चिड़ियोंको जालमें या गोंद लगे बड़े भारी बाँसमें फँसा लेना और उन्हें बेच डालना ही उसका काम था। चिड़ियोंको बेचकर उसे जो पैसे मिलते थे, उसीसे उसका काम चलता था। एक दिन वह बहेलिया अपनी चद्दर एक पेड़के नीचे रखकर अपना बड़ा भारी बाँस लिये किसी चिड़ियाके पेड़ पर आकर बैठनेकी राह देखता बैठा था। इतनेमें एक टिटिहरी चिल्लाती दौड़ी आयी और बहेलियेकी चद्दरमें छिप गयी । टिटिहरी ऐसी चिड़िया नहीं होती कि उसे कोई पालनेके लिये खरीदे। बहेलिया उठा और उसने सोचा कि अपनी चद्दरमेंसे टिटिहरीको भगा देना चाहिये । इसी समय वहाँ ऊपर उड़ता एक बाज दिखायी पड़ा। बहेलिया समझ गया कि यह बाज टिटिहरीको पकड़कर खा जानेके लिये झपटा होगा, इसीसे टिटिहरी डरकर मेरी चद्दरमें छिपी है। बहेलियेके मनमें टिटिहरीपर दया आ गयी। उसने ढेले मारकर बाजको वहाँसे भगा दिया। बाजके चले जानेपर टिटिहरी चद्दरसे निकलकर चली गयी। कुछ दिनों पीछे बहेलिया बीमार हुआ और मर गया । यमराजके दूत उसे पकड़कर यमपुरी ले गये। यमपुरीमें कहीं आग जल रही थी, कहीं चूल्हेपर बड़े भारी कड़ाहेमें तेल उबल रहा था। पापी लोग आगमें भूने जाते थे, तेलमें उबाले जाते थे। यमराजक

स्वाधीनता का सुख

  एक दिन एक ऊँट किसी प्रकार अपने मालिकसे नकेल छुड़ाकर भाग खड़ा हुआ। वह भागा, भागा और सीधे पश्चिम भागता गया, वहाँतक जहाँ रास्तमें एक नदी आ गयी। अब आगे भागनेका रास्ता बंद हो गया। वह रास्तेमें हरे-भरे खेत, पत्तेभरी झाड़ियाँ और खूब घने नीमके पेड़ छोड़ आया था । वह चाहता तो अपनी ऊँची गर्दन उठाकर पत्तियोंसे पेट भर लेता, लेकिन वह वहाँसे दूर भाग आया था। सामने चौड़ी गहरी धारा बह रही थी। पीछे ऊँचा कगार खड़ा था और दोनों ओर दूरतक रेत-ही-रेत थी। कहीं हरियालीका नामतक नहीं था। बेचारा ऊँट वहाँ आकर खड़ा हो गया और जब थक गया तो बैठ गया। वह डरके मारे बलबला भी नहीं सकता था। कहीं ऊँटवाला आकर उसे पकड़ न ले। उसे खूब भूख लगी थी, लेकिन पानीके सिवा वहाँ था भी क्या । वह लाचार था । दो-तीन दिन बीत गये। भूखसे ऊँट अधमरा हो गया। उसी समय एक कौआ आया। उसे ऊँटकी दशापर दया आ गयी । उसने कहा – 'ऊँट भाई! मैं उड़ता हूँ, तुम मेरे पीछे चलो। मैं तुम्हें हरे खेततक पहुँचा दूँगा।' ऊँट बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने कौएको धन्यवाद दिया। चलनेको तैयार हो गया। उसी समय उसे याद आया और उसने पूछा – 'भाई! उस खेतमें कभी आदमी तो नहीं आता ?

जैसे को तैसा

भैंस और घोड़े में लड़ाई हो गयी। दोनों एक ही जंगलमें रहते थे। पास-पास चरते थे और एक ही रास्ते से जाकर एक ही झरने का पानी पीते थे। एक दिन दोनों लड़ पड़े। भैंस ने सींग मार-मार कर घोड़े को अधमरा कर दिया। घोड़ेने जब देख लिया कि वह भैंससे जीत नहीं सकता, तब वह वहाँसे भागा । वह मनुष्यके पास पहुँचा। घोड़ेने उससे अपनी सहायता करनेकी प्रार्थना की। मनुष्यने कहा – भैंसके बड़े-बड़े सींग हैं। वह बहुत बलवान् है, मैं उसे कैसे जीत सकूँगा। घोड़ेने समझाया – मेरी पीठपर बैठ जाओ। एक मोटा डंडा ले लो। मैं जल्दी-जल्दी दौड़ता रहूँगा। तुम डंडेसे मार-मारकर भैंसको अधमरी कर देना और फिर रस्सीसे बाँध लेना । मनुष्यने कहा – मैं उसे बाँधकर भला क्या करूँगा?  घोड़ेने बताया- भैंस बड़ा मीठा दूध देती है। तुम उसे पी लिया करना । मनुष्यने घोड़ेकी बात मान ली। बेचारी भैंस जब पिटते-पिटते गिर पड़ी, तब मनुष्यने उसे बाँध लिया। घोड़ेने काम समाप्त होनेपर कहा – अब मुझे छोड़ दो। मैं चरने जाऊँगा।  मनुष्य जोर-जोरसे हँसने लगा। उसने कहा- मैं तुमको भी बाँधे देता हूँ। मैं नहीं जानता था कि तुम मेरे चढ़नेके काम आ सकते हो। मैं भैंसका दूध पीऊँगा और

अधम बालक

वर्षाके दिन थे। तालाब लबालब भरा हुआ था। मेढक किनारेपर बैठे एक स्वरसे टर्र-टर्र कर रहे थे। कुछ लड़के स्नान करने लगे। वे पानीमें कूदे और तैरने लगे। उनमेंसे एकने पत्थर उठाया और एक मेढकको दे मारा। मेढक कूदकर पानीमें चला गया। मेढकका कूदना देखकर लड़केको बड़ा मजा आया। वह बार-बार मेढकको पत्थर मारने और उन्हें कूदते देखकर हँसने लगा । पत्थर लगनेसे बेचारे मेढकको चोट लगती थी। उनको मनुष्यकी भाषा बोलनी आती तो अवश्य वे लड़केसे प्रार्थना करते और शायद उसे गाली भी देते। लेकिन बेचारे क्या करें। चोट लगती थी और प्राण बचानेके लिये वे पानीमें कूद जाते थे। अपनी पीड़ाको सह लेनेके सिवा उनके पास कोई उपाय ही नहीं था । लड़का नहीं जानता था कि इस प्रकार खेलमें मेढकोंको पत्थर मारना या कीड़े-मकोड़े, पतिंगे आदिको तंग करना अथवा उनकी जान ले लेना बहुत बड़ा पाप है। जो पाप करता है, उसे बहुत दुःख भोगना पड़ता है और मरनेके बाद यमराजके दूत उसे पकड़कर नरकमें ले जाते हैं। वहाँ उसे बड़े-बड़े कष्ट भोगने पड़ते हैं। लड़केको तो मेढकोंको पत्थर मारना खेल जान पड़ता था। वह उन्हें बार-बार पत्थर मारता ही जाता था । 'इसे पकड़ ले चलो।'

भगवान् का भरोसा

जाड़ेका दिन था और शाम हो गयी थी। आसमानमें बादल छाये थे। एक नीमके पेड़पर बहुत से कौए बैठे थे। वे सब बार-बार काँव-काँव कर रहे थे और एक-दूसरेसे झगड़ भी रहे थे। इसी समय एक छोटी मैना आयी और उसी नीमके पेड़की एक डालपर बैठ गयी। मैनाको देखते ही कई कौए उसपर टूट पड़े। बेचारी मैनाने कहा – 'बादल बहुत हैं, इसलिये आज जल्दी अँधेरा हो गया है। मैं अपना घोसला भूल गयी हूँ। मुझे आज रात यहाँ बैठे रहने दो।' कौओंने कहा—'नहीं, यह पेड़ हमारा है। तू यहाँसे भाग जा।' मैना बोली –'पेड़ तो सब भगवान्‌के हैं। इस सर्दीमें यदि वर्षा हुई और ओले पड़े तो भगवान् ही हमलोगोंके प्राण बचा सकते हैं। मैं बहुत छोटी हूँ, तुम्हारी बहिन हूँ, मुझपर तुमलोग दया करो और मुझे भी यहाँ बैठने दो।' कौओंने कहा – 'हमें तेरी जैसी बहिन नहीं चाहिये । तू बहुत भगवान्‌का नाम लेती है तो भगवान्‌के भरोसे यहाँसे चली क्यों नहीं जाती? तू नहीं जायगी तो हम सब तुझे मारेंगे।' कौए तो झगड़ालू होते ही हैं, वे शामको जब पेड़पर बैठने लगते हैं, तब आपसमें झगड़ा किये बिना उनसे रहा नहीं जाता। वे एक-दूसरेको मारते हैं और काँव-काँव करके झगड़ते ह